काशी में ‘विकास’ का बुलडोजर—लेकिन नीचे दब गई सदियों की गलियाँ!

गौरव त्रिपाठी
गौरव त्रिपाठी

काशी की गलियाँ सिर्फ तंग नहीं—इतिहास की अलमारी में फँसे वे पुराने कपड़े हैं जिन्हें कोई फेंक भी नहीं सकता और पहन भी नहीं सकता।
इन दिनों इन्हीं गलियों में आध्यात्मिकता से ज्यादा JCB का ध्यान लगाया जा रहा है। दलमंडी, जो सदियों से काशी की धड़कन थी, अब विकास बनाम विरासत की WWE Ring बन चुकी है।

मॉडल रोड का सपना: प्लान शानदार, जमीन पर बवाल

प्रशासन का प्लान सुनने में IIT-टॉपर प्रोजेक्ट जैसा है— 650 मीटर लंबी, 17.5 मीटर चौड़ी, फर्स्ट-क्लास Model Road
लेकिन अड़चन ये कि जिस जगह सड़क बनानी है, वहाँ लोग रहते हैं, दुकानें चलती हैं, और रोटी कमाई जाती है। ₹222–224 करोड़ की इस परियोजना का ऐलान ऐसे किया गया जैसे बस रंग भरने की बात हो। असलियत ये है कि हर मीटर सड़क के नीचे सदियों की जिंदगी की परतें दबी हैं

दलमंडी का दर्द: पगड़ी सिस्टम वाले लोग सबसे ज्यादा कुचले गए

दलमंडी में 187–190 इमारतें, सैकड़ों दुकानें, हजारों सपने… सब एक मॉडल रोड की कीमत पर। सबसे ज्यादा चोट उन पर, जो पगड़ी सिस्टम पर वर्षों से दुकान चला रहे थे। मुआवजा? “सरकार कहती है—आप किराएदार थे, मालिक नहीं।” यानी “दुकान तुम्हारी थी, लेकिन काग़ज़ों में नहीं… तो अब किसका नुकसान?”

यह सच्चाई है— दिल दुखा है, दस्तावेज़ नहीं।

विरासत बनाम विकास: राजनीति की बिसात खुलकर बिछ गई

इतिहासकार कह रहे हैं—दलमंडी को तोड़ना काशी की आत्मा को खरोंचना है। विपक्ष कह रहा है— “राजनीतिक बुलडोज़र चल रहा है।”

अखिलेश यादव तंज कसते हुए— “वोट न देने वालों की गलियाँ चौड़ी करने की जगह खाली कराई जा रही हैं!”
भाजपा का पलटवार भी कम नहीं— “विकास का विरोध मत कीजिए—राजनीति कीजिए अलग से।”

इस मुद्दे पर काशी में प्रदूषण नहीं, आरोपों का धुआँ फैला है।

कोर्ट का स्टेटस क्वो, पर जमीन पर ‘स्टेटस नो’

कोर्ट ने कहा— “यथास्थिति बनाए रखें।” लेकिन जमीन पर स्थिति ये— जहाँ मुआवजा मिल गया, वहाँ काम शुरू। जहाँ विरोध है, वहाँ पुलिस, RAF, ड्रोन, और तनाव—सब कुछ मौजूद। गलियों में मशीनें नहीं लाई जा सकतीं, तो “मॉडल रोड” का मॉडल—हैंड ड्रिल + हथौड़ा + भारी पुलिस बन गया है।

तनाव इतना कि कई परिवारों की शादियाँ भी टल गईं। काशी में इन दिनों ‘शहनाई’ से ज्यादा ‘ड्रिल मशीन’ की आवाज़ गूंज रही है।

विकास को रास्ता चाहिए… लेकिन क्या वो दिलों से होकर गुजरेगा?

दलगई में हर गिरती दीवार एक सवाल पूछ रही है— क्या विकास का हर रास्ता विरासत को कुचलकर ही निकलेगा?
काशी का इतिहास कह रहा है— “मेरी गलियाँ संकरी थीं, लेकिन इरादे नहीं।”
आज लगता है— इरादे चौड़े हो गए, पर संवेदनाएँ संकरी।

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